Monday, August 10, 2020

Sanskrit Class 12 NCERT Solutions Bhaswati Chapter 2 न त्वं शोचितुमर्हसि

NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Bhaswati Chapter 2 न त्वं शोचितुमर्हसि is provided here according to the latest NCERT (CBSE) guidelines. Students can easily access the solutions which include important chapter questions and detailed explanations provided by our experts. Students can further clear all their doubts and also get better marks in the exam. 

With these solutions, students will be able to understand each topic clearly and at the same time prepare well for the exams.


Get CBSE class 12 Sanskrit NCERT solutions for Bhaswati chapter 2 न त्वं शोचितुमर्हसि below . These solutions consist of answers to all the important questions in NCERT book chapter 2.


1. एकपदेन उत्तरत - 

(क) अयं पाठ: कस्मात् ग्रन्थात् संकलित:?  

(ख) बुद्धचरितस्य रचयिता कः अस्ति?  

(ग) नृणां वरः कः अस्ति?  

(घ) अश्वपृष्ठात् कः अवातरत्?  

(ङ) स्नापयत्रिव चक्षुषा प्रीतः कम् अब्रवीत्?



उत्तराणि 

(क) 'बुद्धचरितम्' महाकाव्यात्

(ख) अश्वघोष: 

(ग) सिद्धार्थ: 

(घ) सिद्धार्थ: 

(ङ) छन्दकम्


2. पूर्णवाक्येन उत्तरत - 

( क ) स्वजनस्य विपर्यये का स्थितिः भवति ? 

( ख ) महाबाहुः संतप्तमनसे किं ददौ ? 

( ग ) बुद्धः किमर्थं तपोवनं प्रविष्टः ? 

( घ ) त्वं कीदृशं मां न शोचितुमर्हसि ? 

( ङ ) कस्मिन् सति कस्य अकालः नास्ति ?


उत्तराणि 

( क ) विपर्यये स्वजनः भूयिष्ठं जनीभवति । 

( ख ) महाबाहुः सन्तप्तमनसे भूषणानि ददौ । 

( ग ) बुद्धः जरामरणनाशार्थं तपोवनं प्रविष्टः । 

( घ ) त्वम् अभिनिष्क्रान्तं मां न शोचितुमर्हसि । 

( ङ ) जीविते चञ्चले सति धर्मस्य अकालः नास्ति ।


3. अधोलिखितेषु सन्धि कुरुत 


त्यागात् + न , 

च + एव , 

विश्लेषः + तस्मात् , 

न + अस्नेहेन , 

बहुशः + नृपः 


उत्तराणि - 


त्यागान्न , 

चैव , 

विश्लेषस्तस्मात् , 

नास्नेहेन , 

बहुशो नृपः ।


4. अधोलिखितेषु प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत - 


सुप्तः , विश्रान्तः , दृष्ट्वा , अवतीर्य , भूयिष्ठम् , आदाय , विज्ञाप्यः , वाच्यम्


उत्तराणि - 


सुप्तः - स्वप् + क्त । 

विश्रान्तः - वि + श्रम् + क्त । 

दृष्ट्वा - दृश् + क्त्वा । 

अवतीर्य - अव + तृ + क्त्वा > ल्यप् । 

भूयिष्ठम् - बहु + इष्ठन् ( बहु = भू + युक् + इष्टन् ) ।

आदाय - आ + दा + क्त्वा > ल्यप् । 

विज्ञाप्यः - वि + ज्ञा + णिच् + पुक् + यत् । 

वाच्यम् - ब्रू ( वच् ) + ण्यत् । 


5. अपोलिखितश्लोकयो हिन्दी / आइलभाषया अनुवादः कार्यः 


( क ) प्रकटावदीपकर्माण मणिमादाय भास्वरम् । 

         मुवन्यापयमिदं तस्थी सादित्या इव मन्दरः ।। 


अनुवाद - मकट से दीपक का काम ( प्रकाश ) करने वाली चमकीली मणि को लेकर इस वाक्य को बोलते हुए सिद्धार्थ सूर्य से युत्ता गन्दर पर्वत को भौति स्थित हो गए । 


( ख ) जरामरणनाशार्य प्रविष्टोऽस्मि तपोवनम् ।

         न खलु स्वर्गतर्षण नास्नेहन न मन्युना ।।

          

अनुवाद - ( मैं सिद्धार्थ ) सुतापे और मृत्य के विनाश के लिए तपोवन में प्रविष्ट हुआ है । निश्चय ही में न स्वर्ग की इच्छा से , न दुःख के कारण अधबा स्नेह ( प्याए न मिलने के कारण और न ही कोच के कारण ( तपोवन में प्रविष्ट हुआ हूँ । ) ।


6. ' न त्वं शोचितुमर्हसि ' इति पाठस्य सारांशः मातृभाषया लेखनीयः ।


उत्तरम् - ' न त्यं शोधितुमासि ' पाठ का सारांश ' 

 

न त्वं शोचितुमासि ' शीर्षक युक्त पाठ महाकवि अश्वघोष द्वारा विरचित महाकाव्य ' बुद्धचरितम् ' से संकलित है । जब सिद्धार्थ महाभिनिष्कमण के लिए गृहत्याग करते हैं , तब सारथी छन्दक उन्हें भार्गव ऋषि के आश्रम तक पहुंचाता है।

मनुष्य - श्रेष्ठ सिद्धार्थ सूर्योदय के मुहूर्त भर बाद भार्गव ऋषि के आश्रम में पहुंचे । उस आश्रम में हरिण विश्वासपूर्वक सो रहे धे , पक्षी निर्भयतापूर्वक वृक्षों पर बैठे हुए थे और यके हुए से लग रहे सिद्धार्य उस आश्रम को देखकर मानो धन्य हो गए । वे शिष्टाचार का पालन करते हुए घोड़े की पीठ से उत्तरे । उन्होंने घोड़े की पीठ थपथपायी और प्रेम भरी दृष्टि से देखते हुए सारथी छन्दक की स्वामिभक्ति की प्रशंसा करने लगे । उन्होंने कहा कि उन्नति में तो सब साथ देते हैं परन्तु मुसीबत में तो अपने भी मुंह मोड़ लेते हैं ।

तत्पश्चात् उन्होंने सारथी छन्दक की स्वामिभक्ति से प्रसन्न होकर वियोग के कारण दुःखी मन वाले छन्दक को अपने आभूषण उतार कर दे दिए । मुकुट से मणि निकालकर गम्भीरतापूर्वक ये छन्दक से कहने लगे कि हे छन्दक ! तुम महाराज को प्रणाम करके तया यह मणि भेंट करके उनके सन्ताप को दूर करने के लिए यह कहना कि मैंने बुढापे और मृत्यु से मुक्ति पाने के लिए तपोवन में प्रवेश किया है , अन्य किसी कारण से नहीं । अतः अभिनिष्क्रमण किए हुए मेरे लिए वे शोक न करें । 

यद्यपि हमारा मिलन चिरकाल के उपरान्त होगा परन्तु में ऐसा उपाय करूँगा जिससे बार - बार काल ( मृत्यु ) से मिलन नहीं होगा । मने मोक्ष पाने का दृढ़ निश्चय किया है , जिससे स्वजनों से फिर वियोग न हो । यद्यपि मैंने अनुचित समय ( असमय ) पर वनगमन किया है परन्तु इस चञ्चल जीवन में धर्म के लिए कोई भी समय अनुचित नहीं है । 

है प्रिय छन्दक ! तुम इस प्रकार के वचन कहकर महाराज के समक्ष निवेदन करना और ऐसा प्रयत्न करना जिससे वे मुझे याद न करें । तुम महाराज के सामने मेरी निर्गुणता का वर्णन करना । क्योंकि निगुणता से स्नेह का त्याग कर दिया जाता है तथा स्नेह का परित्याग करने से व्यक्ति शोक का पात्र नहीं रहता ।


7. रिक्तस्थानानि पूरयत ए


( क ) न त्वं ______ अर्हसि ।

( ख ) स ददर्श ______ आश्रमपदम् । 

( ग ) स विस्मयनिवृत्यर्थं ______ च । 

( च ) जनीभवति भूयिष्ठम् _______ विपर्यये । 

( ड ) अकालः_______ धर्मस्य ।


उत्तराणि 


( क ) न त्वं शोचितुम अर्हसि । 

( ख ) स ददर्श भार्गवस्य आश्रमपदम् । 

( ग ) स विस्ममनिवृत्यर्थ तप . पूजार्थमेव च । 

( घ ) जनीभवति भूयिष्ठम् स्वजनोऽपि विपर्यये । 

( ङ ) अकालः नास्ति धर्मस्य ।


8. विशेष्य - विशेषणयोः योजनं कुरुत - 

( क ) भास्करे 

( ख ) जनः 

( ग ) मणिम् 

( घ ) जीविते 

( ड ) माम्


( i ) अभिमुखः 

( ii ) भास्वरम्

( iii ) जगच्चक्षुपि 

( iv ) अभिनिष्कान्तम् 

( v ) चञ्चले 


उत्तराणि 

( क ) भास्करे ( iii ) जगच्चक्षुषि

( ख ) जनः ( i ) अभिमुखः 

( ग ) मणिम् ( ii ) भास्वरम् 

( घ ) जीविते ( v ) चञ्चले 

( ङ ) माम् ( iv ) अभिनिष्क्रान्तम्


9. उदाहरणानुसार विग्रहपदानि आवृत्य समस्तपदानि रचयत


आदित्येन सह - सादित्यः

स्वर्गाय तर्षः - स्वर्गतर्षः

न काल : - अकाल :

महान्तौ बाहू यस्य सः - महाबाहुः

वसुधायाः अधिपः - वसुधाधिपः 


10. अधोलिखितपदानां विपरीतार्यकपदैः मेलनं कुरुत


पदानि  

( क ) सुप्तः

( ख ) अवतीर्य

( ग ) स्वजनः

( घ ) नृपः

( ङ ) ध्रुवः


विपरीतार्थकपदानि

( क ) चञ्चलः  

( ख ) रंकः

( ग ) जागृतः

( घ ) आरुह्य

( ङ ) परजनः  


उत्तराणि


पदानि - विपरीतार्यकपदानि 

( क ) सुप्तः - ( ग ) जागृतः

( ख ) अवतीर्य - ( घ ) आरुह्य

( ग ) स्वजनः - ( ङ ) परजनः 

( घ ) नृपः - ( ख ) रंकः 

( ङ ) ध्रुवः - ( क ) चञ्चलः



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